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अभू॑दु वो विध॒ते र॑त्न॒धेय॑मि॒दा न॑रो दा॒शुषे॒ मर्त्या॑य। पिब॑त वाजा ऋभवो द॒दे वो॒ महि॑ तृ॒तीयं॒ सव॑नं॒ मदा॑य ॥४॥

English Transliteration

abhūd u vo vidhate ratnadheyam idā naro dāśuṣe martyāya | pibata vājā ṛbhavo dade vo mahi tṛtīyaṁ savanam madāya ||

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Pad Path

अभू॑त्। ऊ॒म् इति॑। वः॒। वि॒ध॒ते॒। र॒त्न॒ऽधेय॑म्। इ॒दा। न॒रः॒। दा॒शुषे॑। मर्त्या॑य। पिब॑त। वा॒जाः॒। ऋ॒भ॒वः॒। द॒दे। वः॒। महि॒। तृ॒तीय॑म्। सवन॑म्। मदा॑य ॥४॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:34» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:3» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वाजाः) बुद्धिमान् (नरः) सत्कर्म्मों में अग्रगामी और (ऋभवः) विज्ञानवान् जनो ! (वः) आप लोगों के वा (विधते) विद्या और उत्तम शिक्षा का ग्रहण करते हुए अध्यापक वा उपदेशक जन के तथा (दाशुषे) विद्या के देनेवाले (मर्त्याय) मनुष्य के लिये (रत्नधेयम्) रत्नों का पात्र (इदा) इस समय (अभूत्) होवे (उ) और (वः) आप लोगों के लिये जो (मदाय) आनन्द के अर्थ (महि) बड़े (तृतीयम्) तीन संख्या को पूर्ण करनेवाले (सवनम्) सुख और ऐश्वर्य को मैं (ददे) देता हूँ, उसका आप लोग (पिबत) पान करो और आप लोगों से मैं विद्याग्रहण करता हूँ ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जिन लोगों के समीप से विद्या आप लोग ग्रहण करें, उनके लिये रत्न दो, जिससे दोनों जगह विद्या और ऐश्वर्य्य बढ़े ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे वाजा नर ऋभवो ! वो विधते दाशुषे मर्त्याय रत्नधेयमिदाभूदु वो युष्मभ्यं यन्मदाय महि तृतीयं सवनमहं ददे तद्यूयं पिबत युष्मभ्यं विद्यामहमाददे ॥४॥

Word-Meaning: - (अभूत्) भवेत् (उ) वितर्के (वः) युष्मभ्यम् (विधते) विद्यासुशिक्षाविधानं कुर्वतेऽध्यापकोपदेशकाय वा (रत्नधेयम्) रत्नानि धीयन्ते यस्मिँस्तत् (इदा) (नरः) नेतारः (दाशुषे) विद्यादात्रे (मर्त्याय) मनुष्याय (पिबत) (वाजाः) विज्ञानवन्तः (ऋभवः) प्राज्ञाः (ददे) दद्याम् (वः) युष्मभ्यम् (महि) महत् (तृतीयम्) त्रयाणां पूरकम् (सवनम्) सुखैश्वर्य्यम् (मदाय) आनन्दाय ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्या ! येषां सकाशाद्विद्या भवन्तो गृह्णीयुस्तेभ्यो रत्नानि ददतु। यत उभयत्र विद्यैश्वर्य्यं वर्द्धेत ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! ज्या लोकांकडून तुम्ही विद्या ग्रहण करता त्यांना रत्ने द्या. ज्यामुळे उभयताजवळ विद्या व ऐश्वर्य वाढेल. ॥ ४ ॥